अभिषेक नायर को लेकर उठे सवाल: BCCI की मीटिंग में किसने की शिकायत, किसने भर दिए कान?

भारतीय क्रिकेट टीम के सहायक कोच अभिषेक नायर को उनके पद से हटाने के फैसले ने क्रिकेट जगत में हलचल मचा दी है। एक तरफ जहाँ यह कदम टीम इंडिया के हालिया प्रदर्शन को लेकर उठाया गया बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसके पीछे कुछ अंदरूनी राजनीति और आपसी अनबन की भी चर्चा ज़ोरों पर है।

सूत्रों के मुताबिक, BCCI (भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) ने पहले ही नायर को उनके पद से हटाने की योजना बना ली थी। टेस्ट मैचों में न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मिली हार को कारण बताया गया, लेकिन असल कहानी इससे कहीं ज्यादा गहरी और चौंकाने वाली है।

नायर और हाई-प्रोफाइल मेंबर के बीच टकराव

माना जा रहा है कि टीम इंडिया के सहयोगी स्टाफ के एक हाई-प्रोफाइल सदस्य के साथ अभिषेक नायर की बनती नहीं थी। यह टकराव इतना गंभीर था कि इसका असर टीम के ड्रेसिंग रूम के माहौल पर भी पड़ रहा था।

बीसीसीआई के एक वरिष्ठ सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “भारत की टेस्ट क्रिकेट में हाल की हार के बाद सहयोगी स्टाफ के बीच चल रही खींचतान की समीक्षा के लिए एक बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने नायर की भूमिका पर सवाल उठाए और यह कहा कि उनकी उपस्थिति टीम के ड्रेसिंग रूम में नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।”

सितांशु कोटक की एंट्री और नायर की विदाई की पटकथा

अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, सितांशु कोटक को जब अतिरिक्त बल्लेबाजी कोच के रूप में टीम में शामिल किया गया, तभी से नायर को हटाने की रणनीति तैयार की जा चुकी थी। कोटक की एंट्री को चैंपियंस ट्रॉफी से पहले टीम के ढांचे में बदलाव की एक रणनीति माना जा रहा है, ताकि विवादों से बचते हुए नायर को बाहर का रास्ता दिखाया जा सके।

बोर्ड की बैठक में मौजूद सचिव देवजीत सैकिया, उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला, राष्ट्रीय चयनकर्ता और टीम के अन्य अधिकारी इस रणनीति से पूरी तरह अवगत थे। उन्होंने किसी तरह का शोर-शराबा किए बिना नायर को किनारे करने का यह तरीका चुना।

BCCI की SOP बनी एक और वजह

सिर्फ विवाद ही नहीं, बीसीसीआई की नई SOP (मानक संचालन प्रक्रिया) भी नायर की विदाई का कारण बनी। इसके तहत सहयोगी स्टाफ का कार्यकाल अधिकतम तीन साल तक सीमित किया गया है।

टी दिलीप (फील्डिंग कोच) और सोहम देसाई (स्ट्रेंथ एंड कंडीशनिंग कोच) का भी पद से हटना तय माना जा रहा है क्योंकि वे भी तीन साल से अधिक समय से अपने पदों पर कार्यरत हैं। हालांकि नायर को हटाने की असली वजह SOP कम और टीम के भीतर की राजनीति ज्यादा बताई जा रही है।

घरेलू क्रिकेट का दिग्गज, लेकिन…

अभिषेक नायर ने भले ही भारत के लिए केवल 3 वनडे खेले हों, लेकिन घरेलू क्रिकेट में उनका रिकॉर्ड बेहद शानदार रहा है। 103 प्रथम श्रेणी मैच खेलने वाले इस ऑलराउंडर को एक ज़माने में भारतीय टीम के भविष्य के तौर पर देखा गया था।

हालांकि, कोचिंग और मेंटरशिप के रोल में आने के बाद से ही उनका करियर एक अलग दिशा में चला गया। मुंबई इंडियंस और फिर केकेआर जैसे फ्रेंचाइज़ी के साथ काम कर चुके नायर को युवाओं को तराशने वाला कोच माना जाता रहा है।

नायर ने चुप्पी साधी

इस पूरे घटनाक्रम पर जब पीटीआई ने नायर से संपर्क करने की कोशिश की, तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। नायर की चुप्पी ही इस बात का संकेत है कि वे फिलहाल किसी सार्वजनिक बयान से बचना चाहते हैं।

ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें बीसीसीआई की तरफ से कोई मीडिया बयान न देने की सख़्त हिदायत दी गई हो, ताकि अंदरूनी विवाद और अधिक न बढ़े।

खिलाड़ियों और स्टाफ के रिश्ते में तनाव?

सूत्र यह भी बताते हैं कि नायर और एक वरिष्ठ खिलाड़ी के बीच भी रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। टीम के ड्रेसिंग रूम में दो गुट बन चुके थे – एक नायर के समर्थन में और एक उनके खिलाफ।

यह विभाजन टीम की एकता और मनोबल पर असर डाल रहा था, जिससे प्रदर्शन भी प्रभावित हुआ। बोर्ड ने समय रहते इसे पहचानते हुए यह बड़ा फैसला लिया।

नतीजा: टीम की एकता बनाम व्यक्तिगत अहंकार

इस घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या टीम इंडिया में व्यक्तिगत टकराव, अहम की लड़ाई और आंतरिक राजनीति क्रिकेट की सफलता के रास्ते में रोड़ा बन रही है?

कोचिंग स्टाफ का काम सिर्फ तकनीकी सुधार तक सीमित नहीं होता, बल्कि ड्रेसिंग रूम का माहौल बनाए रखना और खिलाड़ियों में समरसता बनाए रखना भी उतना ही ज़रूरी होता है।

निष्कर्ष: नायर गए, लेकिन सवाल बाकी हैं

अभिषेक नायर को हटाने का फैसला भले ही बोर्ड के SOP और प्रदर्शन के आधार पर लिया गया हो, लेकिन इसके पीछे की राजनीति, अंदरूनी कलह और गुटबाजी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

बीसीसीआई के इस कदम से यह संदेश ज़रूर गया है कि अगर टीम के अंदर किसी भी प्रकार का नकारात्मक माहौल बनता है, तो बोर्ड उसे सख्ती से समाप्त करने में देर नहीं करेगा।

पर क्या इस फैसले से टीम इंडिया और भी मजबूत होगी? या फिर एक और अनुभवी क्रिकेटर को सिस्टम ने निगल लिया? यह तो वक्त ही बताएगा।