Rajasthan : “वसुंधरा राजे के गुस्से से कांप उठी भजनलाल सरकार, अफसरों की खुली नींद – जल जीवन मिशन में भ्रष्टाचार का फूटा भांडा?”

Rajasthan : राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है। इस बार यह भूचाल आया है राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की नाराजगी से। अपने गृह जिले झालावाड़ में पेयजल संकट को लेकर नाराज वसुंधरा राजे ने ना केवल प्रशासन को आड़े हाथों लिया, बल्कि भजनलाल शर्मा सरकार को भी एक्शन मोड में ला दिया।

Rajasthan : क्या है पूरा मामला?

दरअसल, वसुंधरा राजे दो दिन पहले झालावाड़ जिले के रायपुर कस्बे में एक कार्यक्रम में शामिल हुई थीं। वहां ग्रामीणों ने जल जीवन मिशन की बदहाली और पानी की किल्लत की शिकायत की। लोगों ने बताया कि गर्मी में बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। यह सुनते ही राजे भड़क उठीं।

राजे ने मौके पर मौजूद PHED (जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग) के अधिकारियों से तीखे सवाल किए। जब उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो उन्होंने सबके सामने क्लास लगा दी। लेकिन बात यहीं नहीं रुकी।

सोशल मीडिया पर भड़कीं राजे, ट्विटर पर लिखा- “क्या सिर्फ अफसरों को प्यास लगती है?”

इस घटना के बाद वसुंधरा राजे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए कहा:

“क्या जनता को प्यास नहीं लगती? सिर्फ अफसरों को ही लगती है? गर्मी में जनता त्रस्त है और अफसर तृप्त हैं। पानी कागजों में नहीं, लोगों के होठों तक पहुंचे। धैर्य की परीक्षा मत लीजिए, झालावाड़ में ऐसा हरगिज नहीं चलेगा।”

राजे की इस पोस्ट ने सरकार के गलियारों में हड़कंप मचा दिया। देखते ही देखते PHED मंत्री कन्हैयालाल चौधरी ने सफाई पेश की और खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने मंत्री को सीएम आवास पर तलब कर लिया।

संतरी से लेकर मंत्री तक सब तलब, फाइलें दौड़ने लगीं

राजे के इस सख्त तेवर के बाद PHED के चीफ इंजीनियर (प्रोजेक्ट) ने रायपुर के संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है। वहीं मंत्री कन्हैयालाल चौधरी, जो उस समय डीडवाना जिले के कुचामन सिटी के दौरे पर थे, उन्होंने तुरंत बयान जारी किया और कहा:

“पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का कहना पूरी तरह जायज है। जल जीवन मिशन से राज्य के 50% क्षेत्रों तक पानी नहीं पहुंच रहा है। पिछली सरकार ने सही काम नहीं किया और भ्रष्टाचार हुआ। हम सामूहिक प्रयासों से समाधान निकालेंगे।”

इसके तुरंत बाद मंत्री चौधरी अपने दौरे से लौटे और सीधे मुख्यमंत्री आवास (CMR) पहुंचे। वहां अतिरिक्त मुख्य सचिव भास्कर सावंत सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे। इस बैठक में पेयजल संकट को लेकर विस्तृत चर्चा हुई।

जल जीवन मिशन की साख पर सवाल, जनता त्रस्त और अफसर मस्त?

जल जीवन मिशन केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके लिए प्रधानमंत्री द्वारा राजस्थान को 42,000 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी। सवाल यह है कि इतनी बड़ी राशि के बावजूद भी यदि जिले में पानी की किल्लत है, तो इसका जिम्मेदार कौन?

राजे ने पूछा – “झालावाड़ के हिस्से की राशि का क्या हुआ? पाई-पाई का हिसाब दो!”

उनके इस बयान से यह साफ है कि वे केवल नाराज नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की जवाबदेही तय करना चाहती हैं। यदि अप्रैल में ही हालात इतने गंभीर हैं, तो जून-जुलाई में क्या होगा?

जुड़ा मुद्दा – पानी, योजना, भ्रष्टाचार, सरकार

इस मुद्दे को यदि व्यापक रूप से देखा जाए तो यह केवल एक जिला या एक नेता की नाराजगी का मामला नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के पेयजल प्रबंधन, योजनाओं के क्रियान्वयन, और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा सवाल बनकर उभरा है।

राज्य में करोड़ों रुपये की योजनाएं चल रही हैं – बीमा, लोन, पेंशन, उज्ज्वला योजना, लेकिन जब तक इनका सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक जनता को लाभ नहीं मिलेगा।

राजे का यह तेवर इन सभी योजनाओं को लागू करने वाले अफसरों और मंत्रियों के लिए एक चेतावनी है कि अगर जनता त्रस्त हुई तो सियासी कीमत चुकानी पड़ेगी।

क्या यह सियासी गेम है या वाकई जनसेवा की लड़ाई?

राजनीतिक विश्लेषक इस पूरे घटनाक्रम को लेकर दो पक्षों में बंटे हैं। एक पक्ष मानता है कि वसुंधरा राजे जनता की आवाज बनकर सरकार को आइना दिखा रही हैं, वहीं दूसरा पक्ष इसे आंतरिक शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखता है।

लेकिन सच तो यह है कि इस बयान से भजनलाल सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। यदि जल जीवन मिशन की जमीनी हकीकत उजागर होती रही, तो सरकार को आगामी चुनावों में इसका नुकसान हो सकता है।

निष्कर्ष: क्या वसुंधरा राजे की वापसी की शुरुआत है यह नाराजगी?

इस पूरे घटनाक्रम के बाद सवाल यह भी उठ रहा है – क्या यह वसुंधरा राजे की सक्रिय राजनीति में वापसी का संकेत है? क्या वे आगामी चुनावों में कोई बड़ी भूमिका निभाने जा रही हैं?

फिलहाल तो इतना तय है कि एक ट्वीट से राजस्थान सरकार की नींद उड़ गई है और आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सियासी पारा और चढ़ सकता है।